* प्राणायाम के बारे में संक्षिप्त परिचय (Short Introduction about Pranayam) :
प्राणायाम का शब्दार्थ है ‘प्राण (श्वास) को वश में करना’। योग सम्वन्धी हिन्दू-ग्रन्थों में प्राण-नियंत्रण’ के आठ मुख्य ढंग बताये गये है। परन्तु यहां आपके सम्मुख केवल एक ही ढंग प्रस्तुत किया जाएगा । प्राणायाम श्वास के नियन्त्रण की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण रीति है। प्रश्न है प्राण को वश में करने से क्या लाभ हे ? उत्तर ये है कि, “प्राण को संयमित करने का ढग सीखो तथा इसे प्रयोग में लाओ। आपको अपने अभ्यास द्वारा स्वयं ही पता चल जायगा कि यह अत्यधिक लाभकारी है।” जब कभी आप उदास हो, चिंतित हो, दु.खी हो, उत्साह-हीन हो-आप प्राणायाम कीजिए, आप देखेंगे कि आपको फौरन शान्ति मिलती है। प्राणों के नियन्त्रण का यह लाभ तुरन्त ही होता है।
* प्राणों का आयाम :
जब कभी किसी विषय पर लिखने लगें, जब किसी काम के बारे में विचार करने लगें और जब भी आप देखें कि आप अपने विचारों पर काबू पाने में असमर्थ हो रहे हैं, तो आप प्राणों का आयाम फीजिए । इससे तुरंत आपको स्पष्टता, शक्ति और नियंत्रण प्राप्त होगी। इतनी शक्ति कि स्वयं आप को आश्चर्य होगा । आपको यह अनुभव होगा कि प्रत्येक वस्नु ठीक स्थान पर है । तब आपको कुछ भी अव्यवस्थित प्रतीत नहीं होगा।
प्राणायाम से लाभ (Benefits of Pranayam) :’
प्राणायाम के लाभ निम्नलिखित है- इससे तन और मन की अनेक बीमारियों दूर होती है। पेट दर्द’, शिर दर्द, हृदय-पीडा आदि रोग दूर हो जाते है।
प्राणायाम क्या है? एक विशेष विधि से प्राणो का नियमन । प्राचीन काल से इसका अभ्यास किया जाता रहा है। जिस मनुष्य ने भी इसका अभ्यास किया है, इसे लाभकारी पाया है।
प्राणायाम के लिए आसन (Asana for Pranayam) :
प्राणायाम करने के लिए अत्यन्त सुखदायी आसन मे-सरल साधारण स्थिति में बैठना चाहिए। एक पैर दूसरे पर चढाकर, पालथी मार कर बैठना अत्यन्त सुखदायी आसन है, हाँ, पश्चिमी देशवासियों के लिए वह अवश्य कठिन है। इसलिए कोई चाहे तो आराम कुर्सी पर बैठ सकता है।
अपना शरीर सीधा रखिए। रीढ की हड्डी को खडी करके रखिए। छाती बाहर फुलाकर रखिए। दाये हाथ का अँगूठा दाये नासिका पर रखिए। अब बाये नासिका से धीरे धीरे श्वास भीतर खीचिए। उस समय तक धीरे-धीरे साँस खीचते रहिए जब तक आपकी आराम मिलता रहे । जब तक साँस आराम से खीच सके, तब तक खींचते रहिए। सांस अन्दर खीचते हुए, मन को एकाग्र करके इस विचार पर लगा दीजिए कि आप सर्वशक्तिमान्, सर्वव्यापक, अंतर्यामी परमात्मा को आप अपने भीतर ग्रहण कर रहे है। मानो आप परमेश्वर, नारायण, सम्पूर्ण विश्व का पान कर रहे है। आपने अपनी शक्ति के अनुसार पूर्ण श्वास खीच लिया है, तब उँगली से बाएं नासिका को वन्द कर दीजिए । जव आप दोनों नासिका को बन्द कर ले, तब आपके मुँह से र्सास बाहर न निकलने पाये । अन्दर खीची हुई सांस अपने अंदर उदर तथा पेट में रहने दीजिए । सव छिद्र वायु से भरे हों, उस वायु से भरे हो जिसे आपने भीतर खीचा है। जब श्वास द्वारा खींचा हुआ वायु आपके अन्दर रहे, तव चित्त को इस विचार में निमग्न कीजिए – “मैं परमेश्वर हूं, मैं सर्वशक्तिमान् हूँ, में सर्वान्तर्यामी का अंश हूं । मैं विश्व के अणु-परमाणु मे व्याप्त हूँ। मैं पूर्ण हूं ।
इस विचार की अनुभूति मे अपनी समस्त शक्तियों को नियोजित कर दीजिए। अपनी ईश्वरता की अनुभुति प्राप्त करने में अपनी सम्पूर्ण शक्तियो को लगा दीजिए। जैसे-जैसे सांस आपके शरीर मे परिपूरित’ हो जाए, वैसे-वैसे यह अनुभव कीजिए- “में सत्य हूं, में दिव्य शक्ति हूं, में संसार मे पूर्ण हूं।”
इस पर अपने मन को एकाग्र कीजिए। जब आपको प्रतीत हो कि अब आप श्वास को एक पल के लिए भी रोकने में असमर्थ है तो बायाँ नासिका बन्द रखकर दायाँ नासिका खोल दीजिए। अब दाये नासिका से धीरे धीरे श्वास को बाहर निकालिए। मन को उस विचार में लगाये रखिये ।
मन को अनुभूति होने दीजिए कि जैसे जैसे श्वास बाहर जा रहा है, वैसे वैसे अंदर की समस्त मलीनता नष्ट हो रही है। उसके साथ ही सारी दुष्टता, दुर्गन्ध, अविद्या बाहर जा रही है। सारी दुर्वलता, अविद्या, भयातुरता, चिन्ता, पीड़ा, आतंता नष्ट हो रही है।
1. सांस बाहर निकालने के बाद :
जब आप सॉस बाहर निकाल चुके, आराम से जितनी साँस बाहर निकाल सके, उतनी निकाल चुके, तो जब आपको यह प्रतीत हो कि अव और साँस बाहर नहीं निकाल सकते, तब दोनो नासिका खुले रखते हुए प्रयत्न कीजिए कि जरा-सी भी वायु अन्दर न जाने पाये। जितनी देर हो सके वायु को अन्दर जाने से रोकिए । जब आपके चेष्टा द्वारा वायु नासिकायों से फुफ्फुसो में न जाने पाती हो, उस समय भी चित्त को ध्यान मे लगाइए, यह अनुभव करने दीजिए, कि मैं परमात्मा हूँ। सम्पूर्ण काल वस्तु देश मेरा है और
मैं इनसे परे हूँ । मैं कल्पनातीत हूं ।
2. प्राणायाम में चार प्रक्रियाएँ (Four Procedures of Pranayam):
इस प्राणायाम मे अब तक आपके सम्मुख चार प्रक्रियाएँ उपस्थित की गई है – दो मानसिक और दो शारीरिक । प्रथम प्रक्रिया अन्दर साँस खीचने की थी। भीतर श्वास खीचने का क्रिया शारीरिक क्रिया थी । तथा यह विचार करना कि मैं परमात्मस्वरूप हूँ, ये मानसिक क्रिया थी ।
इसके बाद जव तक आपने श्वास को फुप्फुसो में रोके रखा तो वह शारीरिक क्रिया थी। तथा अपने आपको समस्त विश्व में परिव्याप्त हूं समझने की क्रिया मानसिक क्रिया थी ।
तृतीय प्रक्रिया में अपने दाये नासिका से श्वास धीरे-धीरे बाहर निकाली, अपनी समस्त दुर्वलता दूर कर दी । इसमे श्वास वाहर निकालना शारीरिक क्रिया थी तथा अपने दोषों को बाहर निकालने की क्रिया मानसिक क्रिया थी। यह चौथी क्रिया थी ।
इसके वाद आप कुछ देर विश्राम कर सकते हैं। इस समय आप श्वास को स्वाभाविक विधि से नासिकाओं में जाने-आने दीजिए। फिर उसी प्रकार साँस को शीघ्र अन्दर खीचिए तथा वाहर निकालिए, जैसे दूर तक चलने के वाद स्वाभाविक होता है। यह श्वास का तीव्र गति से भीतर जाना और वाहर निकलना स्वयं एक प्राणायाम है। इसे नैसर्गिक प्राणायाम कह सकते है। इसके बाद थोड़ी देर आराम कीजिए ।
कुछ देर बाद प्राणायाम आरम्भ कीजिए । अब इस बार दायें नासिका से श्वास अन्दर खीचना आरम्भ कीजिए । पहले की तरह गानसिक क्रिया जारी रखिए। हां, दायें नासिका से सांस भीनर खीचिए ।
वाये नासिका को बन्द रखिए। ऐसा करते हुए इस प्रकार विचार कीजिए – मैं सांस के साथ परमात्मा को भीतर ग्रहण कर रहा हूँ । शक्ति के अनुसार श्वास अन्दर खीच लेने के पश्चात् जब तक आराम से सम्भव हो, तब तक श्वास को अन्दर रोक कर रखिए। जिस समय श्वास आपके अन्दर रहे, तब तक ऐसा अनुभव कीजिए- “मै समस्त विश्व का जीवन हूँ, प्राण हूँ।
इसके उपरान्त बायें से धीरे-धीरे श्वास बाहर निकालिए। इसके साथ ही इस प्रकार चिन्तन कीजिए- “मै सम्पूर्ण दुर्वलता, अज्ञान, गन्दगी, बदबू बाहर निकाल रहा हूँ।
इसके अनन्तर साँस को अपनी नाक से वाहर रखने (रोकने) का प्रयास कीजिए और प्रत्येक क्रिया का समय बढाने का प्रयास कीजिए। कुल मिलाकर इस प्रक्रिया में आठ क्रियाएँ है। पहली चार क्रियाओ से आधा प्राणायाम सम्पन्न होता है। दूसरी चार क्रियाओं से पूरा होता है।
इन क्रियाओ का अभ्यास करते-करते प्राणायाम का काल बढाते जाइए । प्राणायाम मे एक स्वर-ताल-गति है। जिस प्रकार पेडुलम दोनो तरफ झूला करता है, उसी प्रकार प्राणायाम में आप अपने श्वास को पेडुलम के समान बनाते है। ताल में बँधी चाल से चलाना होता है। इसके वाद आप अनुभव करेगे कि आपको कितनी शक्ति प्राप्त होती है। इससे आपकी अधिकांश वीमारियाँ आपको छोड़कर भाग जाएँगी । यदि प्राणायाम का ठीक-ठीक (यथा विधि) निरन्तर अभ्यास किया जाए, तो हर एक रोग दूर हो सकता है।
3. प्राणायाम में सावधानी (Precautions of Pranayam) :
जव लोग प्राणायाम का अभ्यास करना आरम्भ करते है, तो उनमें से कुछ लोग रुग्ण हो जाते है। इसका कारण यह होता है कि वे स्वाभाविक पद्धति से प्राणायाम नहीं करते। वे इतने हद तक श्वास भीतर खीचते और बाहर निकालते है कि रोगी हो जाते है। प्राणायाम की प्रत्येक क्रिया आपको स्वाभाविक बनकर करनी चाहिए। अपने को किसी भी दशा में थका मत डालिए। शक्ति से अधिक देर तक प्राणायाम मत कीजिए। जहाँ जरा सी भी थकान प्रतीत हो वहीं रुक जाइए । ठहर जाइए। आप किसी के बंधे हुए नही हैं। दूसरे दिन फिर अधिक सावधानता से शुरू कीजिए । सदा अपनी शक्ति को सुरक्षित बचाकर रखिए। विवेक से सभी काम कीजिए । प्राणायाम से सभी प्रकार के शारीरिक व्यायाम का लाभ आ जाता है।